ब्रह्मकमल - ( Brahma Kamal )

ब्रह्मकमल
हिमालय की वादियों में एक ऐसा फूल भी है जो 14 साल में एक बार खिलता है। इसका नाम है ब्रह्मकमल। यह फूल तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर सिर्फ रात में खिलता है। सुबह होते ही इसका फूल बंद हो जाता है। इसे देखने दुनियाभर से लोग वहां जाते है। हाल ही ब्रह्मकमल की तस्वीर भारत-तिब्बत सीमा पुलिस ने भी जारी की है। इसे उत्तराखंड का 'राज्य पुष्प ' भी कहते हैं। ब्रह्मकमल को अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे उत्तरखंड में ब्रह्मकमल, हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस। ब्रह्म कमल का वानस्पतिक नाम : Saussurea obvallata है ये एस्टेरेसी कुल का पौधा है। सूर्यमुखी, गेंदा, डहलिया, कुसुम एवं भृंगराज इस कुल के अन्य प्रमुख पौधे हैं।आधुनिक विज्ञान के संदर्भ में भी इस फूल में कई औषधीय गुण हैं।

ब्रह्मकमल से जुड़ी पौराणिक  बातें

यह लंबे समय से विश्वास है कि अगर जो कोई भी इस दुर्लभ फूल को खिलते हुए देखता है,उसकी सारी इच्छाएं पूरी होती है। लेकिन इसे खिलते देखना आसान नहीं है क्योंकि यह देर शाम या रात को खिलता है और केवल कुछ घंटों तक ही खिला रहता है। गणेश जी के पुनः जन्म की कथा बड़ी लोकप्रिय है। इसमें भी ब्रह्मा कमल का जिक्र आता है कहा जाता है पार्वती के अनुरोध पर ब्रह्मा ने ब्रह्मा कमल का निर्माण किया, जिनकी सहायता से भगवान शिव ने एक हाथी के सिर को गणेश के शरीर पर रखा। जब शिव ने गणेश के शरीर पर एक हाथी के सिर को जोड़ा तो ब्रह्मा कमल से पानी छिड़क कर उन्हें नहलाया गया था यही कारण है कि इस कमल को देवताओं को जीवन-देने वाले फूल की संज्ञा दी भी गई है ब्रह्मांड के निर्माता भगवान ब्रह्मा को हमेशा एक विशाल कमल पर बैठा दिखाया जाता है ये 'ब्रह्मा कमल' का ही सफ़ेद फूल है ऐसा कहा जाता है कि ब्रह्मा भगवान विष्णु की नाभि से पैदा हुए थे जबकि कुछ अन्य पुराण कहते हैं कि वह एक विशाल सफेद कमल से पैदा हुए थे जिसे ब्रह्मा कमल कहते हैं। महाभारत में भी इस फूल का जिक्र आता है जब पांडव जंगल में निर्वासन में थे तो द्रोपदी इस फूल को देख कर अपने साथ हुए अपमान को कुछ देर के लिए भूल गई थी इसी प्रकार रामायण में जब लक्ष्मण को संजीवनी बूटी दी गई गई तो वो चमत्कारिक रूप से पुनर्जीवित हो उठे इससे खुश हो भगवान राम पर देवताओं ने स्वर्ग से पुष्प वर्षा की पृथ्वी पर जहाँ भी ये पुष्प गिर गए वहां ये फूलों की घाटी के रूप में उग आये और 'ब्रह्मा कमल ' कहलाये
 

 बेहद ठंडे इलाकों में मिलता है ब्रह्मकमल

ब्रह्मकमल हिमालय के उत्तरी और दक्षिण-पश्चिम चीन में पाया जाता है। यह ब्रह्मकमल हिमालय के बेहद ठंडे इलाकों में ही मिलता है। बदरीनाथ, केदारनाथ के साथ ही फूलों की घाटी, हेमकुंड साहिब, वासुकीताल, वेदनी बुग्याल, मद्महेश्वर, रूप कुंड, तुंगनाथ में ये फूल मिलता है। धार्मिक और प्राचीन मान्यता के अनुसार ब्रह्मकमल को भगवान महादेव का प्रिय फूल है। इसका नाम उत्पत्ति के देवता ब्रह्मा के नाम पर दिया गया है।

चीन में भी खिलता है, कहते हैं तानहुआयिझियान

ब्रह्म कमल सुंदर, सुगंधित और दिव्य फूल कहा जाता है। वनस्पति शास्त्र में ब्रह्म कमल की 31 प्रजातियां बताई गई हैं। चीन में भी ब्रह्म कमल खिलता है जिसे  'तानहुआयिझियान' कहते हैं जिसका अर्थ है प्रभावशाली लेकिन कम समय तक ख्याति रखने वाला। इसका वानस्पतिक नाम 'साउसुरिया ओबुवालाटा' है। साल केवल जुलाई-सितंबर के बीच खिलने वाला यह फूल मध्य रात्रि में बंद हो जाता है। ब्रह्म कमल को सुखाकर कैंसर रोग की दवा में उपयोग किया जाता है।

 
केदारनाथ धाम में ब्रह्म वाटिका में भी इसकी रौनक

केदारनाथ में पुलिस ने ब्रह्मवाटिका बनाई है वहां भी ये फूल खिले हैं। ख़ास बात है कि संभवतः इंसान की बनाई औषधीय गुणों के कारण संरक्षित प्रजाति में रखा गया है पहली वाटिका है जिसमें ब्रह्मकमल खिले हैं। यह सूरजमुखी की फैमिली एस्टिरेसी का पौधा है। केदारनाथ पुलिस के मुताबिक इस वाटिका को तैयार करने में करीब तीन साल लगे थे। इसकी सुंदरता और औषधीय गुणों के कारण ही इसे संरक्षित प्रजाति में रखा गया है। कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के इलाज में ब्रह्मकमल को काफी मुफीद माना जाता है। यह भी कहा जाता है घर में भी ब्रह्मकमल रखने से कई दोष दूर होते हैं।
 

उत्तराखंड में बनेगा ब्रह्मकमल का बीज बैंक


वन अनुसंधान केंद्र ने राज्य पुष्प ब्रह्मकमल का बीज बैंक तैयार कर लिया है। यह दुर्लभ फूलों को बचाने के लिए शुरू की गई मुहिम के तहत किया गया है। इसके तहत चमोली जिले के रुद्रनाथ औैर मंडल वन प्रभाग में तीन-तीन हेक्टेयर में पौधशाला तैयार हो गई है। वन अनुसंधान केंद्र ने विश्व की धरोहर में शामिल चमोली के फूलों की घाटी में पाए जाने वाले राज्य पुष्प ब्रह्मकमल, हत्था जड़ी, ब्लू लिली समेत अति दुर्लभ किस्म के दो दर्जन से ज्यादा प्रजातियों के फूलों को संरक्षित करने से की गई हैं।

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